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उठ जा पागल मनवा मोरे जमघट नदी के तीर से
मन का मैला कब निकला है धो धो नदी के नीर से
.....
राजाओं ने त्याग दिया सुख क्यों बन गए फ़क़ीर से
बुझती नहीं वो प्यास खीर से जो बुझती है नीर से
.......
छुप जाएं अपराध जगत से छुप न पाये ज़मीर से
सूर्य छिपाया बादल पीछे चांदी बनी लकीर से (silver lining)
........
*चन्द्रकिरण में इक तन शीतल दूजा जले शरीर से
इक भीगे मधुचन्द्र की आंच से... इक पूनम के क्षीर से
......
जौन-कुमार से प्रेरित तुम मैं मीरा मीर कबीर से
कामुकदेव से घायल तुम मैं इंद्रधनुष के तीर से
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उठ जा पागल मनवा मोरे जमघट नदी के तीर से
मन का मैला कब निकला है धो धो नदी के नीर से
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राजाओं ने त्याग दिया सुख क्यों बन गए फ़क़ीर से
बुझती नहीं वो प्यास खीर से जो बुझती है नीर से
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छुप जाएं अपराध जगत से छुप न पाये ज़मीर से
सूर्य छिपाया बादल पीछे चांदी बनी लकीर से (silver lining)
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*चन्द्रकिरण में इक तन शीतल दूजा जले शरीर से
इक भीगे मधुचन्द्र की आंच से... इक पूनम के क्षीर से
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जौन-कुमार से प्रेरित तुम मैं मीरा मीर कबीर से
कामुकदेव से घायल तुम मैं इंद्रधनुष के तीर से
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